Intellectual Lyricism
Monday, February 7, 2011
Monday, October 18, 2010
Hi everyone
Sorry for being out of touch for such a long time...actually I had been very busy of late and hence was not able to devote any time towards writing anything....
This creation of mine ( I’ll not call it a poetry though as I still don’t know that whether it any how meets the standards of any standard poem or not) is just an accidental happening that took place yesterday...when I was in no mood of studying or even reading anything....
When I started writing it I never knew that whether I would be able to come up with something worth sharing with anyone. But as I progressed I found it worthwhile and hence sharing it with all of you.
Since it consists of various instances of not only my life but also of my various friends, batch mates and dear ones......
I would like to dedicate this creation of mine to all my friends, batch mates and dear ones who are really toiling hard to achieve their dreams and make their futures bright.
ROHIT GUPTA
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
छूना है आकाश को परिंदों से है हाथ मिलाना,
चाँद तारों पर बनाना है अपना एक आशियाना,
ऐसा कुछ है अपने सपनो का नजराना,
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
जटिल है राह, मंज़िल का न है ठिकाना,
हर राह पर सिर्फ अँधेरे का ही है बसाना,
अब हर अँधेरे को बस चीरते हुए है जाना
रौशनी की नयी किरण से अपने सपनो का महल है बनाना,
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
न खाने का होश है न कपड़ों का है ठिकाना,
हर हाल में बस अपनी मंज़िल को है पाना,
मेहनत के अलावा न दूसरा है कोई बहाना,
ऊँची है डगर बेमान है यह ज़माना,
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
एक पल लगता है बिखर रहा है वो सपना,
आँखों के आगे टूट रहा हो जैसे घर अपना,
धुंधला रहा हो जैसे मेरे सपनो का वो आशियाना,
डूब रहा हो जैसे मेरे संकल्पों का वो महल पुराना,
हर डर को कड़वे घूँट की तरह पीते है जाना,
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
माता पिता का प्यार न होता, घर वालों का अगर साथ न होता,
तो यहाँ तक भी न होता मेरा आना,
टूट जाता मेरा सपना और ढह जाता मेरे सपनो का वो आशियाना|
इश्वर ने बिना माँगे ही दिया सब कुछ,
इस बात का एहसास है मुझे पुराना,
थमना नहीं है बस बढ़ते है जाना |
दुनिया की हर राह को अपना है बनाना,
परिजनों को गर्व महसूस हो कुछ ऐसा है कर दिखाना,
हर उमीदों पर उनकी खड़ा होकर,
इस दुनिया को एक बार फिर यह याद है दिलाना,
जीतना आसान नहीं है हमसे अब भी ,
क्योंकि इरादों में जोश और जीतने का नशा अब भी वही है पुराना|
अब रुकना नहीं है बस चलते है जाना,
अब थमना नहीं है बस बढते है जाना |
रोहित गुप्ता |